पृथ्वी की उत्पति orgin of earth part 3 || knowledge point by Abhay maurya

 पृथ्वी की उत्पति orgin of earth part 3

द्वैतवादी संकल्पना

 


 


चैंबर्लिन ने 1905 ईस्वी में अपना एक मत दिया इस परिकल्पना से पृथ्वी की उत्पत्ति बनावट वायुमंडल की उत्पत्ति महासागर व महाद्वीप की रचना उष्मा की उत्पत्ति के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है। 



इनका विचार यह था कि पृथ्वी की संरचना केवल निहारिका से ही नहीं बल्कि दो बड़े-बड़े तारों से हुई है। 

इन्होंने बताया कि ब्रह्मांड में दो विशाल तारें थी । एक सूर्य तथा दूसरा साथी तारा। यह निर्माण से पहले सूर्य तप्त एवं गैस पूर्ण नहीं था बल्कि ठोस चमकदार एवं शीतलरूप में था।



ब्रह्मांड में घूमते हुए सूर्य ताराके पास एक विशालकाय साथी तारा पहुंच साथी तारे की आकर्षण शक्ति से सूर्य के धरातल स असम की छोटे बड़े धूल अलग हो गए।



में बिखरे तारों को ग्रहणु कहा जाता है बड़ी-बड़ी कण ग्रह के निर्माण के लिए नाभिकया केंद्रक का कार्य करने लगे। बड़े ग्रहणु अपने आसपास छोटे-छोटे अनगिनत ग्रहणु से मिलकर बृहद रूप धारण कर लिया और ग्रह बन गए।


Source internet 

Abhay maurya 


वायुमण्डल की उत्पति 
 

  • वायुमण्डल की उत्पत्ति दो प्रकार से हो सकती है
👉 बाह्य उद्गम स्रोत 
👉 आंतरिक उद्गम स्रोत (H20,O2,N2)

उष्मा की उत्पत्ति 

  • ग्राहाणु की आपसी टकराव से 
  • ग्रहों के केंद्रीय भाग में दबाव से 
  • पृथ्वी के आंतरिक भाग में दबाव से 

इन्होंने पृथ्वी के विकास अवस्था में 3 दशाएं बताएं

  1. ग्रहणों के संग्रहका समय 
  2. ज्वालामुखी उद्गार का समय
  3. वास्तविक भुगर्भिक कल/समय 
                       मूल्यांकन 

  1.  एक छोटी सी कुंडलीकार निहारिका से संपूर्ण सौर्यमंडल की रचना नहीं हो सकता 
  2. ग्रहों को नियम अनुसार परिभ्रमण नहीं करना चाहिए क्योंकि इनका निर्माण स्वतंत्र रूप से हुआ है लेकिन इनके विपरीत सभी ग्रह निश्चित दिशा में सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। 
  3. ग्रहणुओ की संवर्धन एवं समूहन क्रिया में 9 ग्रह क्यों ही बने काम या अधिक क्यों नहीं।




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